
प्रदेश सरकार ने राज्य में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों और आपदा तैयारियों के दृष्टिगत 890 करोड़ रुपये का ‘हिमाचल प्रदेश आपदा जोखिम न्यूनीकरण और तैयारी कार्यक्रम’ बनाया है। इस प्रोजेक्ट का विकास फ्रांसीसी विकास एजेंसी के सहयोग से किया गया है और यह अप्रैल 2024 से लागू होकर पांच वर्षों तक चलेगा। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने इस पहल के मुख्य उद्देश्य को एक व्यापक दृष्टिकोण में आपदा और जलवायु जोखिम को कम करने के रूप में तय किया है। यह प्रोग्राम आपदा प्रबंधन में बुनियादी संरचनाओं को मजबूत करने और शासन प्रणाली से संबंधित संरचनाओं को विस्तारित करने का एक हिस्सा है। इसमें भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़, बादल फटने, ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली अस्थायी झीलों के कारण बाढ़ और बांध सुरक्षा के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास भी शामिल है।
इस परियोजना में सभी नदियों और घाटियों के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की आकलन (सीसीवीए) के साथ-साथ, कांगड़ा में एक विशेष आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) की स्थापना भी होगी। इस पांच वर्षीय योजना में विभिन्न प्रमुख घटक शामिल हैं, जिनमें आपदा प्रबंधन गवर्नेंस पर विशेष ध्यान केंद्रित हैं। सुखू ने बताया कि इसमें हिमाचल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एचपीएसडीएमए) और जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) को मजबूत करने के साथ-साथ एक राज्य आपदा प्रबंधन संस्थान की स्थापना की जाएगी। इसके अलावा, योजना में एक राज्य-स्तरीय आपदा प्रबंधन केंद्र (ईओसी) और जिला-स्तरीय आपदा प्रबंधन केंद्रों की भी स्थापना होगी। जंगल की आग से होने वाले खतरों का समाधान करने के लिए प्रस्तावित कार्यक्रम में अग्निशमन उपायों की भी रणनीति तैयार की गई है। अग्निशमन केंद्र की स्थापना की भी योजना है। भूस्खलन को रोकने के लिए भी एक योजना शामिल है।